Sunday, June 12, 2011

गज़ल


तुम्हे ढुंडा इस तरह गल्ली गल्लीयो में
भुल गये है खुद का मकान कोनसे गल्लीयो में

खुदा और तुम बुलकुल ही हो एक जैसे
दोनो घर बना लेते हो रकीब के गल्लीयो में

कामयाबी में लगते चार चॉद  होती दुकान
अगर दिल रफ्फू करनेकी तुम्हारी गल्लीयो में

मौतसे ना डरता हू लेकीन हा मगर
एक ख्वाईश ना आये वह तुम्हारी गल्लीयो में

ढुंडता रहा मै जिसको इधर उधर
मिली 'राजदा' को गज़ल इसी गल्लीयो में

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