Friday, January 14, 2011

गझल

कल शाम आने का वादा करना बहुत आसा
हसिनाओ के गुनाह माफ करना बहुत आसा
कहते है वह भुल जावो उन्हे कोई समाझाये
भुलना है मुश्किल और याद रखना बहुत आसा
हमने हर एक चीज बेची इस जमीर के लिये
हम वाकिफ़ ना थै जमीर बेचना बहुत आसा
'राजदा' जजबातो को कर दफ्न दिल के कब्र मे
वरना तो इनको गजल में रखना बहुत आसा