Thursday, July 28, 2016

ग़ज़ल - तुम

शायद किसी मोड पर मिल जायोगी तुम
तहजीब का घूँघट खोल दोगी तुम
कैसे करु शिकवा इस नाकाम जिंदगीसे
इसी जिंदगी मे तो मिली हो तुम
ना अल्फाज़ ना मौसिकी ना अंदाज़-ए-ग़ज़ल
लिखते जाता हू लिखवाती हो तुम
सब्र-ए-इंतिहान बहोत हो चुका है अब
आहट है वह मौत की या तुम
पुछते है क्यो करते हो 'राजंदा'  ग़ज़ल
कैसे कहू फुरसत में पढती हो तुम